माथे पर आई शिकन में ठहरा हुआ पसीना उसके मालिक को हीरे सा लगता है ।
वो भोला है इसे हवा देता है अपने गमछे से या पोछ देता है ,
और मालिक,
मालिक उसका सूखा ललाट देखकर फिर से कोई काम ढूँढ़ता है उसे सौंपने को ।
निचली श्रेणी का मज़दूर गरीब वर्ग का होता होगा , पर जो तनख्वाह देता है, पूरी वसूलता है ।
अपने रोज़ के घण्टे खत्म कर वो घर जाता है और खाट पर बैठ आराम की साँस लेता है ।
कुछ आराम की साँसों के बाद उसे खुद से दुर्गन्ध आने लगती है तो वो अपना गमछा दाहिने तरफ रखकर अपने बच्चों को बुलाता है ।
उसका बेटा आता है , पिता से कसकर गले लगता है साथ ही अपनी नाक थोड़ी सिकोड़ देता है ।
बेटी जो अब तक माँ के साथ थी, आ जाती है, गले लगती है एक हाथ से और दूसरे से नाक ढकती है अपना , आप समझो पिता का ।
ये सब रोज़ होता है ।
गृहणी अब भी कोई काम कर रही होती है ।
वैसे उसके कामों में घण्टे और तनख्वाह का कोई हिसाब नहीं होता।
कुछ देर बाद वो आती है खाना-पीना परोसती है अपने पति और बच्चों को ।
बाएं और झुककर वो गमछा उठाती है हालांकि उसे इससे कोई दुर्गन्ध नहीं आती,
गमछे के किनारे लगी गाँठ खोलकर कुछ पैसे निकालती है ।
पति जिसका पसीना सुख चुका होता है, पत्नी को देखता है, उसे पत्नी के माथे का पसीना हीरे सा नहीं लगता ।
वह भूखा होता है तो चुप रहता है, खाना खाता है ।
2 Comments
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeleteKya baat hai
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