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kalam chalti rahti hai




मन में मेरे हर पल  कई हरकतें  सी होती हैं 
अलग-थलग सी  भावनाएं  पुराने पृष्ठ पलटती है ,
मिटाते  मिटाते ही सही   ये राह ख़त्म ना होती है 
समंदर में गुमराह सी बिन पत्तवार ही चलती  है , 
कलम चलती रहती हे ,कलम चलती रहती है। 1। 

मिजाजो की हवाएँ  यहाँ अनेक रुख बदलती हैं  
उथल पुथल से नाव ये कई बार भटकती है 
पैमाने की तलाश मे लहर सैलाब लाती है ,
उससे मुँह मोड़ते बढ़ते नए किनारे लाती है 
कलम चलती रहती हे ,कलम चलती रहती है। 2। 

खड़ी बड़ी हीम घिरी लोट पोट होती  है 
तो संवार अपनी लय भाव विभोर करती है 
कभी सूखे खेतो में वर्षा का चित्रण करती है 
झन झनाते तारो  के सुर संभाला करती है  
कलम चलती रहती हे ,कलम चलती रहती है। 3।  

ख्यालों के समंदर में निशा दिशा भी खोती है 
फिर अगले उजाले में निकाल दिखाती मोत्ती है ,
आदत लगी नशीली ये जगाया मन को रखती है 
कभी शांत होती हे तो फिर जाग उठती है 
कलम चलती रहती हे, कलम चलती रहती है। 4। 

विलक्षण सी छवी का कभी ऐसा बखान करती है  
सुन्दर सी बोली का उसकी खूब गान करती है ,
अरे उसके न मिलने का वियोग सहा ना जाता है 
देखो फिर से मिलाने का सयोंग कैसा लिखती है 
कलम चलती रहती हे , कलम चलती रहती है। 5।   





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