ठंडी रात में ठिठुरते हुए जब छत पर घूम रहा था तभी कही से उड़ता हुआ एक लिफाफा आया जिस पर रंग बिरंगी चमकीली सी चित्रित एक प्यारी सी मुस्कान :) मैंने लिफाफा खोला। प्रत्येक अक्षर जुगनू की भाति चमक रहा था।
प्यारे दोस्त,
हताश हो क्या ?
कुछ बातें कहनी थी तुम्हें ।
तुम मेरी कल्पनाओ के अनुरूप स्वयं को ढाल नहीं पाए और तुम्हे भय है की इस कारणवश मैं तुमसे रूठ जाऊंगा तो एसा नहीं है परन्तु यह जानकर अच्छा लगा की तुम्हें अब भी मेरी परवाह है।
तुम मुझे खुश नहीं रख पाए और यह सत्य है की तुमने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मुझे तुम्हारा भूत होने पर गर्व हो सके परन्तु विश्वास करो मुझे इन सबसे कोई शिकायत नहीं है । यह पत्र मैं तुम्हें दोषी ठहराने के लिए नहीं लिख रहा। मैं भी अपने हिसाब से चला था मैं भी कई लोगो की इच्छाओ को पूरा नही कर पाया था। मैं जानता हूँ की मैं तुम्हारी जिंदगी का सबसे खुबसूरत हिस्सा हूँ किन्तु कब तक मेरे लिए सोचोगे।
तुमने मुझे रिझाने की हर बेझोड़ कोशिश की है क्या हुआ अगर तुम सफल नहीं हुए तुमने कोशिश तो की , मैं खुश हूँ तुम्हारी कोशिश देख कर , इतना काफी है मेरे लिए। पुराने सपने पुरे नही हुए कोई बात नहीं नए सपने देखो।
मैंने अपनी अपेक्षाओं के हिसाब से एक सम्पति को छोड़ तुम्हे अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था किन्तु एक सम्पति जो मुझे सबसे प्रिय थी वह मैंने तुम्हे स्वयं के विश्वास पर दी थी बिना किसी अपेक्षा के , तुम्हे ज्ञात है न वह "जीज्ञासा "। आशा है तुम इसे व्यर्थ खर्च नहीं कर रहे होगे। मेरी जिज्ञासा का ध्यान रखना खूब और सही खर्च करना।
एक और बात तुम्हें शायद स्मरण नहीं परन्तु सालों पहले जब मैं हताश होता था , विस्मय क्यों दोस्त ? मैं भी तो होता था हताश , हाँ जब एसा होता था तब मै भीतर ही भीतर तुम्हें अपनी प्रेरणा के रूप में देखता और ये जान खुश हो उठता था की तुम मेरी मंजिल हो, मुझे तुम बनना है। तुम पर ही तो निर्भर रहा था मैं और मेरा विश्वास।
तुमने मुझे रिझाने की हर बेझोड़ कोशिश की है क्या हुआ अगर तुम सफल नहीं हुए तुमने कोशिश तो की , मैं खुश हूँ तुम्हारी कोशिश देख कर , इतना काफी है मेरे लिए। पुराने सपने पुरे नही हुए कोई बात नहीं नए सपने देखो।
मैंने अपनी अपेक्षाओं के हिसाब से एक सम्पति को छोड़ तुम्हे अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था किन्तु एक सम्पति जो मुझे सबसे प्रिय थी वह मैंने तुम्हे स्वयं के विश्वास पर दी थी बिना किसी अपेक्षा के , तुम्हे ज्ञात है न वह "जीज्ञासा "। आशा है तुम इसे व्यर्थ खर्च नहीं कर रहे होगे। मेरी जिज्ञासा का ध्यान रखना खूब और सही खर्च करना।
एक और बात तुम्हें शायद स्मरण नहीं परन्तु सालों पहले जब मैं हताश होता था , विस्मय क्यों दोस्त ? मैं भी तो होता था हताश , हाँ जब एसा होता था तब मै भीतर ही भीतर तुम्हें अपनी प्रेरणा के रूप में देखता और ये जान खुश हो उठता था की तुम मेरी मंजिल हो, मुझे तुम बनना है। तुम पर ही तो निर्भर रहा था मैं और मेरा विश्वास।
मित्र मैंने बड़ी आकुलता से तुम्हारा इंतज़ार किया है। तुम भी मुझे उतने ही प्रिय थे जितना तुम्हें मैं प्रिय हूँ ।
अब तुम अपना ख्याल रखना।
तुम्हारा बचपन
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