ads

Geeta Chapter 7 verse no 21- 23 meaning according to me

गीता के अध्याय सात में इन श्लोको के बारे में लोगो को कहना है की गीता में लिखा है मूर्ति पूजा गलत है , परन्तु  ध्यान से देखा जाये तो  साफ़ साफ़ पता चलता है की इन श्लोको का गलत अर्थ निकाला गया है | मेरा आप सभी लोगो से अनुरोध है इन श्लोको को ध्यान से पढ़े और श्लोको के अंत में नीचे विस्तार से समझाया है उसे  भी पढ़े |

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ।।21।।

जो-जो सकाम भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की श्रद्धा को मैं उसी देवता के प्रति स्थिर करता हूँ । (21)
 As soon as one desires to worship the demigods, I make his faith steady so that he can devote himself to some particular deity.(21)

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ।।22।।

वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त होकर उस देवता का पूजन करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किये हुए उन इच्छित भोगों को निःसन्देह प्राप्त करता है। (22)
Endowed with such a faith, he seeks favors of a particular demigod and obtains his desires. But in actuality these benefits are bestowed by Me alone.(22)

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ।।23।।

परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अंत में मुझे ही प्राप्त होते हैं । (23)

Men of small intelligence worship the demigods, and their fruits are limited and temporary. Those who worship the demigods go to the planets of the demigods, but My devotees ultimately reach My supreme planet.(23)


21th  श्लोक में भगवान कहते है की कोई भी मनुष्य किसी भी देवता को पूजता है मैं उसकी श्रद्धा उस देवता के प्रति बनाये  रखता हूँ 
इस श्लोक में भगवान ने देवता को पूजने की बात की है ( भूत,  पिशाच की नहीं ) |
कुरान मे कहा है की गलत भगवान को पूजेंगे तो गलत जगह जायेंगे,उस बात का इस श्लोक से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि भगवान ने देवता कहा है गलत भगवान नहीं |

22th  में भगवान ने कहा है की जो देवता को पूरी श्रद्धा से पूजता है उसकी वह  सारी  इच्छाए पूरी की जाती है जो उसके लिए विधित (लिखी गयी) होती है या जो उसके लिये उचित  होती है |
इस श्लोक से  दो बात समझ सकते है

1st या तो पूरी नियति लिखी जा चुकी है या रास्ते दिए जा चुके है
रास्ते दिए जा चुके है का अर्थ यह है की भगवान हमे अवसर देता है (कौनसे अवसर कब दिए जायेंगे वह लिखा गया है )पर चयन करना हमारे हाथ में है ।तो मेरा मतलब यह है की सब कुछ नहीं लिखा गया  है कुछ चीज़े हमपर निर्भर करती है ।

2nd भगवान हमें बस वही देता है  जो हमारे लिए सही है  | और  यह व्यावहारिक भी है किसी की इच्छा कैसी भी हो सकती है
 ये हम समझ सकते है ।

 23rd 
इस श्लोक में भगवान ने  कहा  है की देवताओ के पूजन से जो इच्छाएं पूरी हुई  है  वे सारी इच्छाएं  अस्थायी है और वे सभी जीव जिन्होंने देवताओ को पूजा है वह सभी मृत्यूपरांत उन्ही देवता को प्राप्त करते हैं |
और जिन जी भक्तो ने स्वयं भगवान को पूजा है चाहे किसी भी भाव से किसी भी तरीके से वे अंत में भगवान को प्राप्त करते है * |
इससे हम समझ सकते है की  गीता  में  मूर्ति पूजा गलत है यह नहीं कहा गया है तो जो लोग इस श्लोक का ऐसा मतलब निकलते है उन्होंने इसे सही से नहीं पढ़ा है |


इस श्लोक को पढ़कर मूर्ति पूजा गलत है यह सवाल तो नहीं आता परन्तु कुछ अन्य सवाल ज़रूर आते है |

मुझे यह समझ नहीं आया था की भगवान ने कहा की जो लोग देवता को पूजते है वे देवता को प्राप्त करते है और जो उन्हें पूजते है वे उन्हें  पंरतु भगवान ने जब विराट स्वरुप दिखाया था तब उन्होंने कहा था सब मुझमे ही है , तो अगर में देवता की पूजा करू और देवता के पास जाऊ तो भगवान से किस तरह से दूर रह सकता हूँ ?|क्योंकि सभी देवता तो भगवान में ही समाए है ?

पर धीरे धीरे जो मुझे समझ आया और शायद सही भी है वह यह है की

जो लोग देवताओ को पूजते है उनकी कुछ न कुछ  इच्छा  होती है  तो वे लोग मृत्युपरांत देवता को प्राप्त करते है(अर्थात स्वर्ग)  और अपने अपने कर्मों के हिसाब से स्वर्ग नरक के सुख दुःख भोगकर वापस इसी संसार में आते है |
 किन्तु जो लोग भगवान को किसी इच्छा या बिना इच्छा, किसी भी तरीके से चाहे देवता में भगवांन को जानकर पूजे वे सभी भक्त अंत में मोक्ष  को प्राप्त करते है अर्थात जन्म मरण के बंधनो से मुक्त होते है |


तो इस श्लोक के  हिसाब से देवता की पूजा करने से अस्थायी इच्छाए पूरी हो जाती है परन्तु मोक्ष  की प्राप्ति नहीं होती और रही बात मूर्ति पूजा की तो बस यही कहूँगा अगर हम आस्तिक है तो इस बात से कोई फर्क नही पड़ता आप किसके सामने हाथ जोड़ते हो

रुढ़िवादी न बने |
धन्यवाद |

Post a Comment

0 Comments