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किस और जा रहे हैं !


ऐसे किसी का अनुयायी होना जो सरल एवं संतोषमय जीवन जीने की राह बताते है अच्छा है, परन्तु उनकी पूजा करना वाकई चिंतन का विषय है ।

हो सकता है उन्होंने आपको बहुत अच्छी और सही राह बताई होगीं , आध्यात्मिक और सांसारिक हर तरह के ज्ञान से आपको अवगत किया होगा परन्तु जो व्यक्ति  ईश्वर को अपना सब कुछ मानता हो वह यह कैसे देख सकता है कि उसके अनुयायी ईश्वर को छोड़ उसी की पूजा में लगे हैं।

वह कैसा साधु है जो खुद को चमक धमक की आड़ में लिप्त रखना चाहता हो ? खुद ही की पूजा होने पर खुश होता हो ? वास्तव में सच्चा साधक और वास्तविक साधु तो वही होगा जो लोगों को ईश्वर के प्रति जागरूक कर साधुवाद दे , सकरात्मकता लिए चले न की अपनी दलाली को चढ़ावा बोले  और लोगों की भावुकता अथवा इच्छाओ  का परिहास कर अपनी जेबें भारी करे।  कई बाबाओं से ज्ञान,भक्ति की कम दलाली की महक ज्यादा  आती है,  "महक" ही कहेंगे चढ़ावे शब्द का इत्र जो लगा है इस पर।

गुरु, बाबा या जो भी शब्द कहें ये सब लोग बस आपके लिए मार्गदर्शक हो सकते है स्वयं मार्ग नहीं और अगर ऐसे लोग औरो को खुद की पूजा करते देख सकते है तो निश्चित तौर पर ये कहा जा सकता है की वे आध्यात्म से कोसों दूर है,और अगर आपको वाकई लगता है कोई मार्गदर्शक होना चाहिए तो आपको अपना मार्गदर्शक बदल देना चाहिए | ध्यान रखे भगवन प्राप्ति का पाठ पढ़ाने वाले भगवान नहीं होते और न हीं उनकी तुलना हमें भगवान से करनी चाहिए

कई बार कथाओं में सुना है कथा करने वाले से ज्यादा पूण्य सुनने वाले को मिलता है वैसे पूण्य शब्द के बारे में कह सकते है इसके अनेक अर्थ नहीं है पर पूण्य का मतलब क्या है इससे कोई मतलब नही है बस पूण्य शब्द सुनते ही एक विचार आता है स्वर्ग और निकल पड़ते है कथा सुनने ।
अन्य दृष्टि से देखें तो समझ आता है, आपकी ही इच्छाओं को पूरा करने के बहाने आपको ठगा जाता हैं । इच्छाएं नेक हो तो साहस ही पर्याप्त होता है उन्हें पूरा करने के लिए और ऐसी नेक इच्छा स्वयं ही साहस उत्पन्न करती है ।


विवेक रखे , विचार करे
धन्यवाद ।

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