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500 का नोट



सोसाईटी की एक मीटिंग खत्म होने के बाद सब अपने अपने घर जा रहे थे मेरे पड़ोसी सक्सेना जी जो नए नए  शिफ्ट हुए थे ठीक मेरे आगे चल रहे थे तभी मैंने देखा की  उनकी जेब से एक नोट निकलकर फर्श पर गिर गया। मैंने पहले तो कुछ सोचा फिर इधर उधर देख नोट अपनी जेब में डाल दिया. और सबसे इधर उधर की बात करते करते घर आ गया। 

घर आकर जब जेब में हाथ डाला तो पता चला जेब फटी हुई थी , जल्दी से घर में इधर उधर देखा, बालकनी में गया वहाँ घर से मीटिंग हॉल तक के रास्ते पर नज़र मारी, नोट कहीं नहीं दिखा  फिर मन में आया की मुझे नोट लौटा देंना चाहिए था वो नये नये आये थे ऊपर से पूरी मीटिंग में अपनी तंगी की बाते कर रहे थे.. उन्होंने कहा था  ईमानदार होने के कितने नुक्सान है आप नहीं समझ सकेंगे मिश्राजी.. 

अब लगा की उनके इतने किस्से  सुनने के बाद भी मैंने पैसे नही लौटाकर गलत किया है, देखो ना पैसे न मेरे पास आये न उनके रहे। 
हाँ  अगर जेब फटी ना होती तो ये धर्म, ज्ञान मुझे भी याद नहीं आता पर मैं समय के साथ चलने वालो में से हूँ  मुझे बस इतना समझ आया था समय इशारा कर रहा था की अब तो  ईमानदार हो जा मिश्रा। 

इतना सब सोच ही रहा था की दरवाजे घंटी बजी.. मैंने खोला देखा सक्सेना जी सामने खड़े थे  वो बोले मिश्राजी आपका 500 का नोट गिर गया था मैंने आवाज लगाई थी पर आपने सुना नहीं..

एक मिनट सक्सेना जी कहते हुए मैंने जेब में हाथ डाला अरे मेरी  जेब फटी हुई थी ..

सक्सेना जी हँसें और बोले जनाब इस तंगी में कपड़ो से पहले जेबें देख लिया करे।

शुक्रिया सक्सेना साहब आप जैसे लोग मिलते कहाँ हे आज कल, आइये चाय बन ही रही हे, पीकर ही जाये।

चाय की चुस्कियां लेते हुए  सक्सेना जी बोले जनाब मेरा भी एक 500 का नोट गुम हो गया है, एक छोटी सी मदद चाहिए थी आपसे, आपको तो पता ही हे कितनी मंदी  चल रहीं हे अभी।

मैंने कहा अरे आप खुलकर बोलिये साहब क्या मदद चाहिए।

मिश्रा जी बस 500 रुपये दो दिन  के लिये उधार चाहिए अभी ज़रूरत है मुझे

मैंने हँसकर कहा अरे साहब आप ही पैसे लाये हे अब आप ही माँग रहें। मैं सही में काफी प्रभावित हुआ था उनकी ईमानदारी से, मैंने कहा ये लीजिये साहब आराम से लौट देना। और इससे पहले की उनके पहले की ली हुई उधार चुकाने वाले किस्से शुरू हो मैंने कुछ काम का बहाना बना उन्हें रवाना किया।

उसके बाद पहले तो छः महीनों तक तो वो और वक़्त मांगते रहे और मैं देता रहा, फिर खबर मिली सक्सेना साहब ने सोसाइटी ही छोड़ दी।

 दौ साल हुए है इस बात को न तो कभी वो दिखे और न उनका  कोई फ़ोन आया और मैं भी क्या ही बोलता...

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