मोबाइल की रिंगटोन बजी..
घर जाने की तैयारी करते हुए आशीष को कॉल आया और आवाज से उसे पता चला की उसका मोबाइल टेबल पर ही रह गया था ।
"अभी मोबाइल यही भूल जाता , अरे तीन मिस्ड कॉल छोटू के ,लेकिन अभी तो छः बजने में 25 मिनट बाकी है न "टाइम देखकर उसने कहा ।
आशीष छोटू को कॉल लगाता है ।
"क्या हुआ छोटू ? अभी तो साढ़े पाँच हुए है । "
"अरे भैया दीदी आ गयी है, और आज तो कोई लड़का भी साथ में है .. " छोटू धीरे से कहता है ताकि किसी को सुनाई न दे ।
"क्या ? कौन है ?" आशीष गंभीर होकर पूछता है ।
"आप आकर देख लो भैया " और कॉल डिसकनेक्ट हो जाता है ।
[ छोटू ने आशीष के आफिस के कैंटीन में एक साल तक काम किया था । एक बार जब छोटू को बुखार आया था तब आशीष को पता चला की इसके बावजूद भी कैंटीन वाले ने उसे जबरदस्ती काम पर बुलाया है, तब आशीष ने कैंटीन वाले को जो सुनाया था छोटू उसे कभी भूला नहीं पाया , उसके लिए किसी ने कोई लड़ाई नहीं लड़ी थी, तब से आशीष को बहुत मानता था वो । लेकिन अब छोटू ने आफिस के पास के मॉल के सामने अपना खुद का कैंटीन खोल दिया था और आशीष को अब चाय पीने के लिए बाहर आना पड़ता था ]
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"अभी घर जाऊंगा तैयार होऊंगा तो आधा घण्टा लग जाएगा पर वो तो आधे घण्टे भी नहीं रुकती यहाँ, लेकिन आज कोई साथ है तो कितना रुकेगी पता नहीं " ।
आशीष ने थोड़ी देर के लिए समय का हिसाब किताब लगाया फिर पास के मॉल के लिए गया।
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" अरे दीदी क्या लाना है , और साहब, ये आपके भैया है क्या दीदी ? " छोटू सुष्मिता की टेबल पर कपड़ा घुमाते हुए जो पहले से साफ थी मगर छोटू को जानना था की दीदी क्या लेंगी अगर कुछ खाना पीना हो तो भैया आराम से पहुँच जाएंगे पर अगर आज भी चाय ही लेंगी तो इस शनिवार भी भैया अपने दिल की बात दीदी को कह नहीं पाएंगे ।
"हाँ तेरे भैया है मगर मेरे दोस्त है हम साथ में काम करते हैं और तूझे पता नहीं क्या लाना है ? अपनी अदरक वाली चाय और क्या !" सुष्मिता ने कहा ।
"अरे दीदी भैया को कुछ खिला पिला लो दुबले पतले लग रहे है चक्कर वक्कर आ जायेगा अभी" छोटू ने सुष्मिता के दोस्त की तरफ देखते हुए मज़ाकिया अंदाज में कहा ।
"वाह छोटू मार्केटिंग भी सिख गया तू तो, चल ठीक है फाफड़ा ले आ भैया के लिए " सुष्मिता अपने दोस्त की तरफ हाथ से शांत रहने का इशारा कर हँसते हुए बोली ।
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[ आशीष और सुष्मिता स्कूल के दिनों में बहुत अच्छे दोस्त थे लेकिन सुष्मिता ने वैलेंटाइन डे पर आशीष को प्रोपोज़ कर उसे असमंझस में डाल दिया था तब उसे आई.आई.टी. की तैयारी करनी थी तो वो इन सब से दूर ही रहा । कॉलेज खत्म होने के बाद उसने सुष्मिता को फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड की थी जो स्वीकार ली गई थी लेकिन बात के नाम पर आशीष, सुष्मिता के दो-तीन दिन ऑनलाइन न दिखने पर "हाय, क्या चल रहा है " का मैसेज कर देता था । ]
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"कैसा लग रहा ये" ? आशीष चेंजिंग रूम से जल्दी जल्दी में कॉलर सही करते हुए काउंटर पर आकर वहाँ बैठी लड़की को पूछता है ।
"अच्छा लग रहा है , सर " अपना चेहरा सहमति में हिलाते हुए वो लड़की बोली ।
"ठीक है आप ये पैक कर दीजिये " जो कपड़े पहले से पहन रखे थे, उन्हें देते हुए आशीष ने कहा ।
"सर, आप यही कपड़े पहन रहे हो अभी" ?
आशीष ने बैग पकड़ते हुए " हाँ " की और जल्दी जल्दी में पेमेंट काउंटर की तरफ निकल गया ।
"अरे सर " लड़की ने आशीष को आवाज दी पर वो निकल चुका था ।
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"ये लो भैया फाफड़ा और दीदी आपकी चाय " ।
"अरे छोटू भैया के लिए चाय नहीं लाया " सुष्मिता ने आवाज दी
" अभी लाया दीदी " छोटू ने दाहिने हाथ को ऊपर उठा कर बिना पीछे मुड़े कहा, लेकिन वो चाहता था दीदी थोड़ी देर और रुके ।
भाई ये लड़का बोल ही नहीं रहा दीदी इसकी साइड से खुद बोले जा रही है, लगता है आशीष भैया का पता साफ हो गया दीदी को ये थकेला पसन्द आ गया , साला यहां की चाय पीने वालों की ऐसी पसन्द छी !.
तेरी मिट्टी में मिल जावां....
"हाँ भैया बोलो " छोटू कॉल उठाता है
"छोटू बाहर आना, देखना कैसा लग रहा हूँ" , आशीष छोटू को कैंटीन के बाहर से कॉल कर बुलाता है ।
"अरे सही लग रहे हो भैया, अंदर आओ सामने वाली टेबल खाली है । " एक ट्रे में 4,5 चाय लिए वो आशीष के कॉल पर सीधा बाहर आता है ।
"साथ में कौन है उसके" ? आशीष खुद को ऐसे दिखाने की कोशिश करता है जैसे उसे कोई फर्क नही पड़ रहा हो ।
भैया पूछो मत गोलमाल लग रहा है मुझे । आपको पिछले शनिवार ही बोला था मैं , बता दो दीदी को पर आप हो की अभी नहीं, अभी नहीं, टाइम आने दे , मुझे पता था कोई टाइम नहीं आना, आपकी फट रही थी , पहले बोल देते तो शायद आज आप होते उसकी जगह ।
"चुप हो जा छोटू , तू ज्यादा समझता है क्या हमारा यहां बस हाय हेलो ही हुआ है , एक बार भी ढंग से बात नहीं हुई सीधा प्रोपोज़ कैसे कर दूँ ? दिमाग है या नहीं तुझमे" पर इस बार आशीष की असुरक्षा झलक रही थी ।
अरे भैया बहुतों की सेटिंग देखी है मैंने , मुझे मत सिखाओ ।
आप अच्छे हो इसलिए बता रहा हूँ बोल डालो आज और आज हिम्मत कर लेना वरना दीदी तो गयी ।
आओ अब अंदर...
आशीष असुरक्षा के चरम पर होता है और अपने माथे का पसीना पोछ कर अंदर जाता है ।
सुष्मिता के पास से होते हुए छोटू आशीष की और जाता है , "अरे आशीष भैया आप आये भगवान आये" ऐसा वो इस तरह से बोलता है जिससे सुष्मिता को सुनाई दे सके ।
" ये लो भैया अदरक वाली चाय और गला, दिमाग साफ करो अपना" छोटू आशीष की टेबल पर चाय रख, चूल्हे की तरफ चला जाता है ।
और उतने में सुष्मिता अपने दोस्त को आशीष की शर्ट पर लगे स्टीकर देखने को कहती है और दोनों हँसते है ।
आशीष चाय पीते पीते उनको ऐसे हँसते हुए देखता है तो सुष्मिता को अपना सर झुकाकर एक हेलो कर देता है जिसके जवाब में सुष्मिता भी यही दोहरा देती है ।
"मैंने देर कर दी" उन्हें इस तरह खुलकर बात करते हुए देख आशीष खुद से कहता है और उठकर जाने लगता है ।
हेलो मिस्टर ,, कैंटीन से बाहर निकलते ही पीछे से सुष्मिता का दोस्त आवाज लगाकर चला आता है ।
जी आपने नए कपड़े लिए है शायद ?
" हाँ , लेकिन आपको कैसे पता ?" आशीष अपने मन की उथल पुथल को थामते हुए रुक-रुककर बोलता है ।
"स्टीकर लगा है आपकी शर्ट पर" !
" ये देखो " पास आकर उसे निकालते हुए बताता है ।
"अरे पता नही चला, शायद जल्दी जल्दी में " ,, धत तेरी वाली शक्ल बनाते हुए आशीष असहजता से कहता है ।
"कोई नही, होता है " कहते हुए सुष्मिता का दोस्त अपनी गाड़ी की तरफ चला गया।
आशीष उसे "शुक्रिया " कहता है फिर मुड़कर देखता है तो उसे पता चलता है सुष्मिता अभी भी टेबल पर बैठी है ।
बात करूं क्या , दिल तो ये सोचकर भी टूटा हुआ है की इसका कोई खास दोस्त भी है और अगर नहीं हुआ तो ? इस तरह वो बेचारा खुद को जैसे तैसे समझाता है और फिर से अंदर चला जाता है ।
हाय, क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ? इतनी बार कैंटीन में दूर से हाय हेलो का किस्सा खत्म करते हुए आशीष पहली बार उसे पास बैठने के लिए पूछता है ?
"हाँ बैठ सकते हो आशीष , आप तो भगवान हो न" कहते हुए सुष्मिता हँसने लगती है ।
पहली ही बार में सुष्मिता के मजाक से आशीष की सारी असुरक्षा गायब हो जाती है।
"अरे ये छोटू तो कुछ भी ... " मन ही मन छोटू को धन्यवाद देते हुए आशीष कहता है ।
" हाँ कोई बात नहीं, मैं मजाक कर रही थी "
" तुम अभी भी एकदम बिंदास हो न " आशीष उसकी आँखों मे देख कर पूछता है । सुष्मिता के इस रवैये से आशीष भी बात करने में सहज हो जाता है ।
हाँ और तुम अभी भी शर्मीले ? सुष्मिता ने टाँग खिंचते हुए कहा ।
"नहीं मैं, शर्मिला तो नहीं हूँ अब, आफिस में सबसे काम पड़ता है बड़ों से, छोटों से, लड़कियों से भी, अब तो काफी कूल हो गया हूँ मैं " अपनी सफाई देते हुए आशीष कहता है ।
"अच्छा कूल ! वैसे हम पिछले दिनों में यहां कई बार मिले हैं, तुमने कभी बात नहीं कि तो मुझे लगा अब भी वैसे ही हो । "
"अरे ऐसा नहीं है मैं तो बात करना चाहता था लेकिन वो फेसबुक पर तुमने कभी खुद से मैसेज नहीं किया था तो मुझे लगा शायद तुम बात करना नहीं चाहती" ।
सोशियल मीडिया पर मुझे बात करना नहीं पसंद , मैं बस जोक्स और मोटिवेशनल पोस्ट देखती हूँ वहाँ पर। वैसे तुमने कहा तुम बात करना चाहते थे ?
"हाँ मतलब यूँ ही बात करना चाहता था, क्या चल रहा है ? वगेरह "
शादी वगेरह हुई या नहीं तुम्हारी ?
सब ठीक चल रहा अभी 6 महीने हुए एक कंपनी में जॉब कर रही हूँ और शादी !! सही में ? एक मिनट , रिलेशनशिप स्टेटस पूछना चाहते हो क्या ?
"नहीं, नहीं मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था" आशीष घबराकर बोला ।
"सब ठीक है, और मैं सिंगल ही हूँ वैसे तुम बताओ जॉब लग गई पार्टी नहीं दी तुमने "।
बिना माँगे पार्टी कोन देता है ? आशीष थोड़ा हँसतें हुए बोला ।
[सुष्मिता को इस तरह बात करते देख आशीष को अपने स्कूल के दिनों की बातें याद आने लगी , कितनी सही है यार ये । ]
"अब दे दो तो " हो जाए चाय " ? सुष्मिता ने कहा ।
"बस चाय ? सही है । छोटू दो चाय लाना " आशीष ने हँसते हुए छोटू को आवाज दी ।
" वैसे पार्टी तो मुझे भी देनी चाहिए शर्त जो जीती अभी" सुष्मिता ने कहा ।
"शर्त "? आशीष ने पूछा ।
"हाँ वो मेरे आफिस का एक कॉलीग है उसे लगता था की आफिस के कैंटीन की चाय बेस्ट है तो मैंने उससे शर्त लगा दी और यहाँ की चाय पिलाई उसे,अभी ही गया है वो और उसके दो सौ रुपए भी ।
सुष्मिता अपनी दोनों आँखें छोटी कर खुलकर हँसने लगी ।
" आफिस का कॉलीग ? अच्छा , और कैंटीन की चाय बेस्ट लगी उसे ? अजीब आदमी है ये तो" आशीष ने हँसते हुए कहा लेकिन इस बार थोड़ा ज्यादा ही हँस गया था वो (आफिस का कॉलीग, सही है, छोटू गधा है ।)
"अरे तुमने चाय पी है न अभी, फिर से पी लोगी ?"
आशीष ने पूछा ।
छोटू मेरे दोस्त के लिए चाय लाना भूल गया था और उसे कुछ काम था तो मैंने अपनी चाय उसे दे दी थी लेकिन "तुमने भी तो पी है न " सुष्मिता ने कहा ।
"हाँ , मैं तो आधी ही पी पाया था " तुमने भी नहीं पी ! सही है फिर तो चाय ही पीते है ।
" वो स्कूल के लिए सॉरी " ।
चाय पीते हुए आशीष ने हिम्मत जुटा कर सुष्मिता से कहा ।
"सॉरी क्यों ? सॉरी तो मुझे होना चाहिए " सुष्मिता ने कहा ।
वो मैंने बात करनी बन्द कर दी थी न तुमसे , इसीलिए सॉरी आशीष ने फिर से माफी मांगी लेकिन इस बार पश्चाताप था उसकी आवाज में ।
सुष्मिता के चेहरे की रौनक ये सुनकर चली गयी थी । वो उस सबसे किस तरह उभर पाई थी आशीष को इसका अंदाजा भी नहीं था, वह कहना चाहती थी कि इसीलिए उसने खुद से कभी मैसेज या बात नहीं कि क्योंकि वो उसे छोड़ कर गया था , लेकिन आशीष के सॉरी ने उस पुराने दर्द पर (जो सुष्मिता के हिसाब से अब नही था) मरहम का काम किया ।
"नहीं तुम मुझे शर्मिंदा मत करो आशीष " गड़बड़ तो मैंने कर दी थी , सुष्मिता ने कहा ।
"गड़बड़ मत कहो उसे, मैं उस वक़्त सम्भाल नहीं पाया , पता नहीं मुझे क्या हुआ था, अच्छा भी लग रहा था पर मैं कुछ कह ही नहीं पाया तुमसे " अब तक हर बात पर मज़ाक कर रही सुष्मिता के चेहरे पर छा चुकी नाराजगी पढ़ आशीष ने अपने भावों को बह जाने दिया।
"तुम्हें अच्छा लगा था ! मतलब ?" सुष्मिता ने हैरान आखों से पूछा।
तुम्हे लग रहा होगा मैं तुम्हें छोड़ कर चला गया था लेकिन ऐसा नहीं था , मैं अपने मन में तुमसे अलग हुआ ही नहीं था ।
सुष्मिता मौन थी, वो बस सुनना चाहती थी ।
"मैं तुम्हारे आगे ज्यादा बात नहीं कर पाता था क्योंकि मैं तुम्हें सुनना और देखना पसन्द करता था लेकिन उस वक़्त मुझे कुछ समझ नहीं आया , शायद आज भी नहीं समझ पा रहा " आशीष ने कहना जारी रखा ।
सुष्मिता अब भी उसे सुन रही थी । जैसे वो इसका इंतजार कब से कर रही थी ।
"तुम्हें कैसा लगा होगा मुझे नहीं पता, मैं शायद आज भी कुछ कह नहीं पाता अगर तुम्हारा दोस्त तुम्हारे साथ नहीं आता पर मैं तुम्हे पसन्द करता हूँ सुष्मिता " आशीष ने भावों में बहकर जो इजहार किया वो आदर्श इजहार तो बिल्कुल नहीं था ।
"तुमने मुझे उसके साथ देखकर ये सब कहा ? मेरे और भी दोस्त है आशीष, कौनसे ज़माने में जी रहे हो तुम ? " अब तक सुष्मिता जो बस सुनने की इच्छुक थी, उसने टोकते हुए आश्चर्य से आशीष को पूछा ।
"ऐसा नहीं है सुष्मिता, स्कूल को 6 साल हो चुके थे और मुझे लगता था इतने सालों में तुम्हें कोई और मिल गया होगा और आज जब तुम्हारे दोस्त को तुम्हारे साथ देखा तो मुझे महसूस हुआ मैंने तुम्हें पहले क्यों नहीं बताया ये सब लेकिन जब वह अकेले बाहर आया तब मुझे लगा शायद तुम लोग बस दोस्त हो तो मैंने सोचा अभी नहीं तो कभी नहीं । मैं यह सब आज कह देना चाहता हूँ , यह कोई जलन नहीं है ।" आशीष ने गंभीर होकर जवाब दिया ।
सुष्मिता चुप थी , उसका संशय जा चुका था ।
आशीष भी मौन था । इतने सालों से जो मन में भरा पड़ा था उसने कह डाला था , और उसे जवाब को लेकर भी कोई जिज्ञासा नहीं थी ।
दोनों मौन थे , बाकी रह गयी ठंडी चाय पी रह थे ।
" और तुम्हारी पार्टी " ? आशीष ने कुछ देर बाद मौन तोड़ते हुए पूछा।
"कल, यही अदरक वाली चाय " सुष्मिता ने धीमी सी मुस्कान के साथ कहा ।
2 Comments
Nice
ReplyDeletethank you
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