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चार प्रतिशत और

स्कूल में पहला दिन था उसका , पहले ही दिन क्लास में आधे भीगे हुए बालों के साथ आई थीऔर पूरी क्लास में अपने बालों को आगे-पीछे करती रही । उसकी ओर ध्यान न देने की सभी कोशिशों के बाद भी मेरी  नज़रें उस पर बार बार जाती ।

हमें तो अदाएँ ही दिखी उनकी, फिर पता लगा लड़कियों के बालों को सूखने में समय लगता है ।

पहली पहली बार वाला पता है न ?

उसकी अदाएँ देख अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार होने की ठानी और क्रीम पाउडर को पहली बार अपने गालो को छूने का मौका दिया । वेसलीन, ग्लिसरीन,  माँ और दीदी की चुम्मी के अलावा पहली बार हमारे गालों को किसी को छूने दिया था , हाँ पापा कभी कभी कोशिश करते पर उनकी दाढ़ी चुभती थी  इसलिए बिना किसी रिश्वत के इस तरीके से प्यार जताना उन्हें मना  था ।

काँच के आगे खड़े होकर बाल बनाते हुए सोचा की चौथी कक्षा में मात्र दो नंबर से चूक गया था वरना फर्स्ट आ जाता ।
लेकिन लड़को में तो मैं ही फर्स्ट था ऐसा सोचकर बालों को सवारा फिर नाश्ता करके स्कूल के लिए रवाना हो गया ।

जल्दी उठने के बाद भी मेकअप के पीछे आज देरी हो गयी थी।  टीचर की डाँट, फटकार के बाद जैसे तैसे कक्षा में प्रवेश किया और देखा की निहारिका नहीं आई ।

कक्षा में शोर था लेकिन मुझे सब सुना-सुना लग रहा था और लटकाया हुआ चेहरा ले जाकर अपनी बेंच पर बैठ गया ।

पास में बैठे दोस्त महेश ने मेरी तारीफ की लेकिन मुझे फिर भी बुरा लग रहा था । 
निहारिका का न आना तो बुरा लगने का कारण था ही मगर 5 बजे उठ कर नहाया था मैं, यार कोन उठता है इतनी जल्दी वो भी 7.30 बजे की स्कूल के लिए) "सब बेकार" ।


क्लास अभी तक शुरू नहीं हुई थी ।  सुनील से पूछा तो पता चला  सर नहीं आएंगे आज और वो फिर से अपना क्रिकेट खेलने लग गया, "बुक के पेज नंबर वाला" ।

उसने मुझसे खेलने के लिए कहा लेकिन मैंने मना कर दिया । 

आने के बाद पता नहीं मैंने कितनी बार दरवाजे की तरफ देखा वो आई ही नहीं ऊपर से शोर अलग जो अब सुनाई भी दे रहा था और चुभ भी रहा था और सुष्मिता को भी आज ही ज्यादा बोलना था जब मेरा बोलने का मन नहीं था ।

सुष्मिता हमारे क्लास की टॉपर  थी  तो ईर्ष्या भर भर के थी उससे । उससे बात  कम , झगड़ा ज्यादा होता ।
दोनों को जब भी मौका मिलता एक दूसरे की खिंचाई करते।

मगर आज मेरा कुछ बोलने का मन नहीं था वो पहली बार था जब मैंने किसी के लिए कुछ किया था पर जिसके लिए सब किया था वो तो आई ही नहीं ।

इधर सुनील  बार बार खेलने को कह रहा था एक बार ना कहा मैंने तो बोलने लगा मैं डर गया ।
किसी की ना को हाँ में बदलने का एक तरीका जैसे मुझे पता ही नहीं था , उकसाने पर कई बार काम बन जाते है ..
लेकिन मेरे ऊपर नहीं ।

और मेरा मन ही नहीं था खेलने का तो मना करता रहा , तभी महेश ने पूछा सामाजिक का काम कर लिया क्या ?
मैंने नहीं किया था और याद आया कॉपी चेक होने वाली थी

महेश की और देखते हुए ही सोचा सुष्मिता से कॉपी माँग लूँ  क्योंकि मुझे पिछली बार की तरह महेश की कॉपी से गलत उत्तर नहीं उतारने थे और न हीं मेरा मन था दिमाग लगाने का
जैसे ही मैं सुष्मिता से कॉपी माँगने को मुड़ा  तो देखा वो मुझे ही देख रही थी,, 

मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया सीधे सीधे  उससे कॉपी मांगी फिर काम शुरू किया,,

दो सवाल अब भी बाकी थे तभी सामाजिक के सर आए ,,

मैंने जल्दी जल्दी में कॉपी बन्द करने की कोशिश की मैं नहीं चाहता था वो मुझे नकल करते देखे  लेकिन पिछला कवर खुला रह गया, और जैसे ही उसे बंद करने लगा मुझे उसमें आड़ी तिरछी लाइन के बीच में जो उसकी सफाई वाली कांट छाँट होती थी  वहां लव लिखा हुआ दिखा थोड़ा सा और देखता तो बाकी भी दिख जाता लेकिन सर के डर से कॉपी जल्दी सुष्मिता को दे दी , किस्मत ने साथ दिया सर कॉपी चेक करना भूल गए ...

फिर दूसरी, तीसरी,  क्लास चलती रही पर मेरा ध्यान उसी आखिरी पन्ने पर अटका था,, मैं बहुत उत्साह से सोच रहा था की मुझे अब एक ऐसा बहाना मिलेगा जिससे आगे होने वाली सारी लड़ाई मैं जीत सकता हूँ ।

चौथी क्लास के बाद लंच ब्रेक हुआ मैंने जल्दी से सुष्मिता से कॉपी मांगी
उसने बोला बड़े ढीले हो ,,
मुझे गुस्सा आया पर चुप रहा मैंने कहा थोड़ी तबियत सही नहीं है 2 सवाल बाकी है अभी कल पक्का दे दूँगा ।

उसने बिना कुछ कहे मुझे कॉपी  दे दी ।

मैं अपनी बेंच पर गया और आखरी पन्ना खोला , मैंने गौर से देखा
लिखा था
"सुष्मिता लव सुशील  96%"

 मैं अचंभित था !

मैंने मुड़ कर देखा और वो इधर उधर देख रही थी ,मुझे लगा शायद मुझे देखकर इधर उधर देख रही है, फिर कॉपी बन्द कर  लंच करने लग गया ।

घर जाते ही पूरे दिन उसी का ख्याल रहा  " सुष्मिता लव सुशील " 

पता नहीं ईर्ष्या कहाँ गई ,, और निहारिका का चेहरा तो याद करने की कोशिशों के बाद भी याद नहीं आ रहा था,,

मैंने कॉपी का आखिरी पेज फिर से खोला ,, और बन्द कर दिया,,

अगले दिन जाते ही उसे कॉपी दी और सर ने कॉपी चेक की लंच हुआ मैं उठकर उसके पास गया और उसे आखिरी पेज देखने को बोला

उसका मुँह खुला रह गया

उसने कहा सामाजिक ही दी थी न
मैंने हाँ कहा,

और वो तीन सॉरी एक साँस में बोल गयी । 

मैने उसे फिर से खोलने को कहा

उसने धीरे धीरे  खोला और चुप हो गई,,

मेरी और वापस नहीं देख पाई ।

मैंने फिर कुछ बोलना ठीक नहीं समझा  और अपनी बेंच पर चला आया ।

छूटी हुई ,

वो मेरे पास आई
उसने पूछा सच्ची ?

मैंने कहाँ "हाँ"

96 % पर कट लगा था
नीचे लिखा था 100 % ।



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4 Comments

  1. कुछ कहानियों का अंत देर से अच्छा होता है ।

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  2. Unpredictable ending. I really liked it.

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