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वो दोस्त

"अंदर डालो इसे"
अनिरुद्ध की और हाथ कर जेल की तरफ इशारा कर इंस्पेक्टर साहब बोले ।

"हाँ सर, अंदर चल साले लड़किया छेड़ेगा तू " !
हवलदार ने उसका दाहिना हाथ पकड़ उसे जेल में धकेलते हुए ज़ोर से कहा ।

हवलदार की फटकार सुनते हुए अनुरुद्ध जेल के एक किनारे जाकर बैठ गया और अपनी नम स्तब्ध आँखों से दरवाजे की तरफ देखने लगा ।

"इतनी नफरत कैसे !
गहरी साँस लेते हुए उसने फिर से खुद से सवाल किया ।
"कैसे ? ऐसा क्या किया था मैंने ?" और ज़ोर से आँखें  बन्द कर पुरानी यादों में अपनी गलती ढूंढने की कोशिश करने लगा ।

चार साल पहले  इतनी गहरी दोस्ती  थी।  घण्टो बातें होती थी, लाइट जाने पर मोबाइल को लैपटॉप से चार्ज करके भी मुझसे बात करती थी वो, तो अब ऐसा क्या हुआ ?? 

क्या प्यार का इजहार करना गलत था लेकिन हमारी दोस्ती भी मेरे इजहार से हुई थी, उसने कहा था हम अच्छे दोस्त बन सकते है ..
फिर क्या हुआ अगर मैंने एक और बार इजहार कर दिया तो 
फिर से मना कर लेती  कम से कम दोस्ती तो रहती !! 

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"भव्या यार ज्यादा कर दिया तुमने आज"
उदासी  भरे लहजे के साथ उसकी खास दोस्त कल्पना बोली ।

तो क्या करती यार,  बोल चुकी हूँ बार बार मुझे कोई बात नहीं करनी फिर क्यूं आज घर तक आया,  पागल हो गया है क्या? समझ नहीं आता कुछ ?

अच्छी खासी नौकरी है, काम करे ना यार अपना, मेरे पीछे क्यों पड़ा है ?

लेकिन भव्या उसने इतने समय बाद तुमसे बात करने की कोशिश की है , और रही बात पीछे पड़ने की तो मैं मानती हूँ तुम्हारे ब्लॉक के बाद भी उसने कुछ टाइम  तक  कोशिशें की थी लेकिन आज तो तीन साल बाद आया था वो आज क्यों किया तुमने ये सब ?

दोस्त था दोस्त रहता।  बोल दिया था तुम्हारे बारे में मैं वो सब नहीं सोच सकती पर समझ नहीं आता , एक बार समझा दिया था तो फिर शादी की बात कैसे की ? भव्या ने गुस्से में कहा ।

ठीक है यार पर इतना बुरा नहीं है थोड़ा पागल है पर प्यार करता था तुमसे।  पुलिस ज्यादा हो गया यार, कल्पना ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा ।

तो एफ.आई.आर. नहीं करवाई यार  पास में इंस्पेक्टर साहब खड़े थे तो  गुस्से में उन्हें जाकर बोल दिया ये तंग कर रहा है और वो उसे पुलिस स्टेशन ले गए ।
मेरी क्या गलती इसमें, अब  पुलिस के पीछे पीछे तो भागने से रही ।
बोला था कोई बात नहीं करनी मुझे फिर क्यों बार बार मनाने की कोशिशें करता रहा और  जब पहली बार समझाया था तब बोला था हम अच्छे दोस्त बन सकते है तो दोस्ती का नाटक क्यों किया  ?

"नाटक तो तुमने भी किया था भव्या" कल्पना ने दबी आवाज में कहा।

"बस करो यार" भव्या ने गुस्से में कहा और फर्श पर  नजरें टिकाए देखती रही ।

"पर शादी नहीं कर सकती थी मैं उससे, मेरे पापा .... "
कुछ देर बाद उसने धीरे से कहा और चुप हो  गई , कमरे में सन्नाटा छा गया । 

एक लम्बी साँस लेकर कल्पना ने सन्नाटा तोड़ा और भव्या को गले से लगा लिया  और उसने उसे तब तक नहीं छोड़ा जब तक उसे लगा नहीं की भव्या शांत हो चुकी है ।
 
सब ठीक है ना ? कल्पना ने पूछा ।

भव्या निरुत्तर फर्श की और देखती रही ।

"सुनो, वो तुमसे मिलने नहीं आया था"  ।

"क्या ?" 

हाँ, वो बस एक पार्सल देने आया था लेकिन जब तुम बाहर से आ रही थी तब वो रोक नहीं पाया खुद को शायद इसीलिए बात करने लगा और तुमने ये सब कर लिया ।

क्या  ? कैसा पार्सल ?

"ये देखो " 
कल्पना ने पार्सल भव्या हाथ में पकड़ाया ।

भव्या ने कवर उतारा और फिर से कुछ पल के लिए खामोश हो गयी..
उसकी शादी का कार्ड है कल्पना ,, 
भव्या की आँखें नम थी ।

"मेरे अनिरुद्ध की शादी होने वाली है कल्पना"
उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे ।


कल्पना ने बिना कुछ कहे उसे फिर से कसकर गले लगाया ... 
 
"गलती हो गयी मुझसे कल्पना.."
भव्या ने रोते हुए कहा ।

 कोई बात नहीं भव्या, कोई बात नहीं । मैं जाती हूँ पुलिस स्टेशन,  बात करती हूँ इंस्पेक्टर से ।


"सुनो ना कल्पना मुझे भी ले चलो" 

तुम ऐसे जाओगी ? कल्पना ने भव्या की हिचकी पर अपने दाएँ हाथ की दो अंगुली रख उसका चेहरा अपने सामने करते हुए  पूछा ।

"रुको मैं मुँह धोकर आती हूँ " भव्या अपने दोनों हाथों से अपने गालों पर आए आँसू पोछते हुए बोली ।

तीन साल बाद  प्रेम कितना रह पाता होगा वह चाहते हुए बयां नहीं कर सकती थी और अनिरुद्ध भी कब तक अपने सवालों को  अपने ही  जवाबों से समझा पाता । दोनों ही अपने जीवन में आगे बढ़ चुके थे ।
भव्या अपने कैरियर की चिन्ता में और अनिरुद्ध अपनी सरकारी नोकरी में मगर जो यादें थी वह नहीं भूले थे दोनों, जो दोस्ती नाटक सी लग रही थी वो अब हकीकत बन रही थी ।


अपना मुँह धोकर काँच की और देखते हुए भव्या खुद से बातें करने लगी ।
 "अनिरुद्ध इतना बड़ा कब हो गया"   अपने आँसुओ को पोछते हुए धीमी सी हँसी में उसने खुद से पूछा।

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